शनिवार, 26 नवंबर 2011

मुशरिफ पार्क की वह सुबह

दुबई में लम्बी दौड़ की प्रतिस्पर्धा (मैराथन) के आयोजनों का सिलसिला शुरू हो चुका है. इसी क्रम में इस शुक्रवार 25 नवम्बर 2011 को मुशरिफ पार्क में डोनट 10 रेस का आयोजन हुआ. यह रेस 10 मील का होता है जो लगभग 16 किलोमीटर के बराबर होता है. मैंने भी अपने दो अन्य मित्रों के साथ इसमें हिस्सा लिया. इस रेस को अधिकतम 2 घंटे में पूरा करना होता है और मैंने इसे 88 मिनट में पूरा किया जो गत साल के मेरे टाइम से लगभग 4 मिनट कम है. 


जैसे की नाम से ही स्पष्ट है, इस रेस के बाद आपको तरह तरह के डोनट खाने को मिलते हैं. और मैंने भी इस कार्य में अपने को रोका नहीं. वहाँ लगभग जितने भी फ्लेवर वाले डोनट थे उनका आनंद मैंने उठाया.


मुशरिफ पार्क में दौड़ना एक बहुत ही सुखद अनुभव है. बल्कि हम इस रेस में शामिल होने के लिए साल भर इसका इंतज़ार करते हैं. यह पार्क मूल रूप से साइकिलिंग के लिए है और यहाँ पर रेसिंग ट्रैक नहीं है. हमलोग साइकिल ट्रैक पर ही दौड़ते हैं. यहाँ लगभग 5 किलोमीटर के ट्रैक को इस रेस के लिए चिन्हित किया गया है जिसका हमें तीन चक्कर लगाना पड़ता है. पार्क में रेस होने की वजह से यहाँ पर हमारा हौसला बढाने के लिए लोग तो नहीं होते क्योंकि शहर से दूर इस पार्क में 7 बजे सुबह तो कोई आपका हौसला बढाने या आपको दौड़ते देखने के लिए आने से रहा. फिर पार्क में प्रवेश शुल्क भी देना पड़ता है और पैसा भरकर कोई किसीकी हौसलाअफजाई भला क्यों करे. पर इस पार्क में हमें इसकी कमी नहीं खलती. हमारा हौसला बढाने के लिए यहाँ होते हैं यहाँ चिड़ियों के समूह जो हमें हमारी थकान का आभास भी नहीं होने देते. झाड़ियों और झुरमुटों से गुजरते हुए ये साइकिल ट्रैक "तूर द फ्रोंस" की तरह तो सुन्दर नहीं लगते क्योंकी वह तो बहुत ही  खूबसूरत घाटियों से गुजरती है. पर एक पार्क में जितनी खूबसूरती इसे बख्शी जा सकती है, उतनी खूबसूरत यह लगती है. आप जैसे ही झाड़ियों और झुरमुटों से होकर गुजरते हैं, छोटी छोटी चिड़ियाँ आपके अगल-बगल और ऊपर से फुदकती हुई फुर्र हो जाती हैं. पास के बड़े पेड़ों पर बैठे तोतों और नीलकंठ का दल अचानक ही उड़ान भरने लगता है. इस तरह के दृश्य जब आपके चारों ओर पसरे हों तो दौड़ की मुश्किलों का ख़याल भला किसे रहेगा!!! और यहाँ ऐसा ही होता है. पता लगा की आप एक नन्हीं सी पहाड़ी की ऊँचाइयों को पार करने की चिंता अभी कर ही रहे थे की पाखियों का दल वहाँ आपके स्वागत में समवेत स्वर में गान छेड़ देते हैं. ऐसे में आप अपने पैर में मरोड़ की चिंता करेंगें की इस दुर्लभ ऑर्केस्ट्रा का आनंद उठायेंगें!!! कहीं पर तो किसी झुरमुट में जमे इन नन्हीं चिड़ियों का कलरव और आपके वहाँ पहुँचते ही बढ़ जाता है और वे घबराकर भागते नहीं. 

हाँ, दुबई एअरपोर्ट के समीप होने की वजह से विमानों की आवाजाही से उत्पन्न विचलित कर देने वाली आवाज़ इन चिड़ियों को ज्यादा परेशान करती है और वो इन आवाजों से त्रस्त होकर इधर उधर भागने लगती हैं. अगर ये आवाज न हों तो नीलकंठ, तोते और कतिपय अन्य पक्षियों को हम परेशान होकर भागते नहीं बल्कि पेड़ों की टहनियों पर बैठे आपस में बतियाते और गाते देख सकते थे. 

प्रकृति जहां इस तरह अपने पंख फैलाए बैठी हो, जहां अपने विभिन्न रूपों को इस तरह उकेर  रही हो वहाँ दौड़ते हुए भला तकलीफ का अनुभव किसे होगा!!! सो हमें भी नहीं हुआ और अगर हुआ भी, जो की स्वाभाविक है, तो इन चिड़ियों ने हमें इसका आभास नहीं होने दिया. 

इनसे अगली मुलाक़ात का हमें इंतज़ार रहेगा. 

1 टिप्पणी:

  1. प्रकृति सरहदें नहीं देखती...सब जगह अपनी छटा बिखेरती है...तभी तो वह निश्छल है...सरहदों में तो हम मानव बंटते हैं और बांटते हैं...
    बहुत सुंदर लिखा है...
    एक सुझाव है वर्ड वैरिफिकेशन हटा दीजिए...किसी को भी टिप्पणी करने में आसानी होगी...

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