बुधवार, 18 जनवरी 2012

मन में होता है


मन में होता है 
मैं चलता जाऊं 
ऐसे ही 
हवा के साथ 
मैं बहता जाऊं 
वेगवती 
धारा के साथ 
ऐसे ही 
मैं किरणों को 
आंजुर में उठाऊँ 
और फेंक दूं 
तुम्हारी ओर 
मैं दौडूँ 
लहरों पर 
मैं खींचूँ 
अमिट लकीर 
रेत पर 
मैं बादलों से ले लूं 
उसका रंग 
और लेप दूं 
सीपी के गाल पर 
मैं छोड़ दूं 
लहरों की छाती पर 
कागज़ की अपनी नाव 
और इंतज़ार करूं
हथेली पर चाँद के 
उतरने का 

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