मन में होता है
मैं चलता जाऊं
ऐसे ही
हवा के साथ
मैं बहता जाऊं
वेगवती
धारा के साथ
ऐसे ही
मैं किरणों को
आंजुर में उठाऊँ
और फेंक दूं
तुम्हारी ओर
मैं दौडूँ
लहरों पर
मैं खींचूँ
अमिट लकीर
रेत पर
मैं बादलों से ले लूं
उसका रंग
और लेप दूं
सीपी के गाल पर
मैं छोड़ दूं
लहरों की छाती पर
कागज़ की अपनी नाव
और इंतज़ार करूं
हथेली पर चाँद के
उतरने का
क्या बात है....
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
utsaahvardhan ke liye shukriyaa veena.
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