सोमवार, 30 जनवरी 2012
बुधवार, 18 जनवरी 2012
मन में होता है
मन में होता है
मैं चलता जाऊं
ऐसे ही
हवा के साथ
मैं बहता जाऊं
वेगवती
धारा के साथ
ऐसे ही
मैं किरणों को
आंजुर में उठाऊँ
और फेंक दूं
तुम्हारी ओर
मैं दौडूँ
लहरों पर
मैं खींचूँ
अमिट लकीर
रेत पर
मैं बादलों से ले लूं
उसका रंग
और लेप दूं
सीपी के गाल पर
मैं छोड़ दूं
लहरों की छाती पर
कागज़ की अपनी नाव
और इंतज़ार करूं
हथेली पर चाँद के
उतरने का
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