मंगलवार, 20 नवंबर 2018

हम कहने रही अहाँ के !
-अशोक झा
हम देखि रहल छी -
हमर जीवनक
एकटा पुरान अध्यायक
अंतिम पृष्ठ
एखनहि पढैत-पढैत
अहाँ बेचैन भ उठलहुं अछि
हम देखि रहल छी.
हम देखि रहल छी -
अहाँ अपना गरदनि के
पाछू लिबा क’
कुरसी पर टिका लेने छी
अहाँक आंखि
टटोलि रहल ऐछ किछु
कोनो प्रश्नक उत्तर खोजि रहल छी अहां
या, फेरि कोनो उत्तर के प्रश्न बना
शून्य में उछालि रहल छी
कुर्सीक हत्थाक नींचा
अहाँक झुलैत हाथ में पोथी
ओहिना लटकल ऐछ
हम देखि रहल छी.
हम देख रहल छी -
अहाँ असंयत भेल जा रहल छी
अहांक सांस फूलि रहल ऐछ
पुस्तक पर अहांक आंगुरक दबाब
कम भ रहल ऐछ
अहांक शरीरक आतंरिक संवाद
बाधित भ रहल ऐछ
हम देख रहल छी.
हम देख रहल छी -
हमरा नहीं पता
हमर जीवनक ई अंतिम अध्याय
अहांके एना कियैक
व्यग्र क’ देलक
याद ऐछ ने -
हम कहने रही अहाँ के
जखन हम नै रहब
जीवनक घाट पर
छूटल, असगरे अहाँ
स्मृतिक ओहि पोखैर में बेसी गोंता लगायब
जकर पानि में हम दुनु गोटे
मिलि क’ मिश्री घोरबाक यत्न केने रही
हम कहने रही अहाँ के
याद ऐछ ने –
जीवन में सबटा चीज के बटिखारा स
तौलल नहीं जा सकैत छै
आ फेर एहन जीवन के
जीवनो त नै कहबै!
अहाँ सोचि रहल छी ने यैह सब?
याद ऐछ ने?
हम कहने रही अहाँ के !

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